anandpur satsang

Monday, February 27, 2006

bankoonth chalo

बैकुंठ चलो

एक बार यम लोक मे उदासी छा गई, हुआ यह था कि पहले वहाँ मृत्युलोक से आई जीव आत्माओ की भीड़ लगी रहती थी! काम इतना था कि न चित्रगुप्त को लेखेजोखे से फुरसत मिल पाती थी, न ही यमराज को पल भर चैन मिलता था! लेकिन अब बात वैसी ना रही! दिन रात मे दो चार जीव आत्माओ को दूत ले आते! इस स्थिति से दु:खी होकर एक दिन यमराज नारद और चित्रगुप्त को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास पंहुचे! सारा काम चौपट हो गया है! कोई विशेष काम न होने के कारण स्वर्ग और नरक के कर्मचारी खाली बैठे है! सारे नरक सूने हो गए है! अब तो धरती पर सदा भगवान का संकीर्तन हो रहा है, जिससे सभी पाप नष्ट हो जाते है! कहीं कोई पापी जीव नही रहा! इस तरह भाग्य का लेखा जोखा भी मिट रहा है!

ब्रह्म जी बोले द्यबराओ नही, सही बात बताओ आखिर सभी लोग भगवान विष्णु के भक्त कैसे हो गए ? धरती पर तो सदाचारी की अपेक्षा दुराचारी ज्यादा है! कौन ऐसा धर्मात्मा है, जिसके कारण पापियो का उद्धार हो रहा है?

यमराज बोले-पितामह मै आपके आदेश से ही काम करता हूँ! सृष्टि के लिए जो नियम आपने बनाए है,उन्ही का पालन करना मेरा धर्म है! पुण्य करने वाले को स्वर्ग और पाप करने वाले को नरक भेजता हूँ ,परंतु इस समय धरती पर रुक्मांगद नाम के राजा राज करते है! वह भगवान विष्णु के परम भक्त है! प्रजा उन्हे बहुत चाहती है! राजा का आदेश पालन करके सारी प्रजा भगवान विष्णु की भक्त बन गई है! धरती पर अब सदैव भगवान के नाम का जप-कीर्तन होता रहता है! अब सृष्टि के नियमानुसार विष्णु-भक्त के प्राण मेरे दूत तो हर नही सकते,बस इसी का लाभ उठाकर विष्णु-दूत हर जीवात्मा को बैकुंठ धाम ले जा रहे है और मेरे दूत अपने पाश् लिए खड़े देखते रह जाते है! यही नही उनके पुण्यो का लाभ उनके पूर्वजो को भी मिल रहा है!

यमराज की बात सुनकर ब्रह्म जी बोले-देखो भगवान विष्णु को चुनौती देना या उनकी भक्ति के प्रभाव को कम करना न तुम्हारे वश मे है न मेरे ! फिर भी सृष्टि को संचालित करने हेतु तुम्हे जो काम सौपा गया है,वह भी महत्वपूर्ण है! फिर राजा रुक्मांगद जब तक है,तभी तक ऐसा चलेगा उसके पश्‍चात जरुरी नही कि ऐसा हो, अच्छा अभी उनकी कितनी आयु शेष है ?

चित्रगुप्त ने बताया- अभी तो बहुत आयु शेष है उनकी ! उनके सतगुरु महान योगी है, उन्होने राजा की आयु बढ़ा दी है! यह सब सुनने के उपरान्त नारद जी बोले-पिता जी यमराज मुझे अपने साथ इसलिए लाए है कि आप ही अब इनकी सहायता करे,नही तो दुनिया में किसी को मृत्यु का डर नही रहेगा! मृत्य का भय नही तो यमराज को कौन पूछेगा!

ब्रह्म जी ने ऑंखे बन्द कर ली! कुछ देर बाद ऑंखे खोली तो उनकी शक्ति से एक अति सुन्दर युवती वहा खड़ी थी,सभी उसे देखने लगे! युवती ने हाथ जोड़कर ब्रह्म जी की वंदना की!

ब्रह्म जी ने कहा-देखो,तुम्हारा रुप सबको मोह लेता है सो तुम्हारा नाम मोहिनी होगा! जाओ,मैने जिस उदेश्य से तुम्हे उत्पन किया है,उसे पूरा करो! धरती पर रुक्मांगद नामक राजा है! अब तुम्हे राजा को वश करके उन्हे विष्णु-भक्ति से विमुख करना है! ताकि यमराज की गद्दी सलामत रह सके!

जो आज्ञा पितामह; कहकर मोहिनी मदंराचल पर्वत की ओर चल दी! उसने जान लिया था कि राजा रुक्मांगद भ्रमण के लिए उधर आए हुए है! मोहिनी मधुर स्वर मे गाने लगी ! रुक्मांगद ने गायन सुना और मोहिनी को देख सोचने लगे कि ये तो कोई अप्सरा है! राजा मोहित हो गए! मोहिनी ने कहा-राजन सकोंच छोड़िए मै आपके वश मे हूँ! आपके लिए ही यहाँ आई हूँ! परन्तु मुझे पाने के लिए कुछ देना भी पड़ेगा!

मगर क्या? राजा बोले! एक वचन,जब मै माँगू मेरे वचन की रक्षा करेगें,सिर्फ यही चाहती हूँ!
राजा ने वचन दे दिया, दोनो ने विवाह कर लिया! नई रानी का भरपूर स्वागत हुआ! कुछ दिन बीते!
एक दिन राजा भगवान विष्णु की विशेष पूजा के आयोजन के लिए जाने लगे, तभी मोहिनी ने उनका रास्ता रोक लिया! कहा-मुझे दिया वचन पूरा करे!

राजा चकराए! बोले-पूजा तो कर आऊ! मोहिनी बोली-नही पहले वचन पूरा करे! राजा ने पूछा-बोलो क्या चाहिए ? मोहिनी ने कहा-आज से भगवान विष्णु की पूजा बन्द! प्रजा को भी आदेश दे कोई भी पूजा न करे! आप बस मेरे साथ ही रहे!

राजा तो जैसे सकते मे आ गए! संभल कर बोले-यह तुम क्या कह रही हो! मेरा जीवन तो भगवान विष्णु की भक्ति-पूजा के लिए समर्पित है! मै उसे नही छोड़ सकता, तुम कुछ और मांग लो!

मोहिनी बोली-तो फिर तुम बड़ी रानी से उत्पन अपने इकलौते बेटे का सिर मुझ्रे दे दो! मेहिनी ने सोचा राजा पुत्र का सिर तो देने से रहा;इस तरह से भक्ति अवश्‍य छोड़ देगा! वो बेचारी ये नही जानती थी कि भक्ति का नशा एक बार जिसको चढ़ जाता है,फिर नही उतरता!

राजा को धर्मसंकट मे पड़ा देख कर राजकुमार धर्मांगद तलवार लेकर आया! पिता के चरणो मे तलवार रखकर बोला-पिता जी,मेरा सिर काटकर अपना वचन पूरा कीजिए! राजा पुत्र की हत्या करने को तैयार नही थे,किंतु वचन की मर्यादा के लिए उन्होने तलवार उठाई! तभी उनका उठा हुआ हाथ जैसे जड़ हो गया! सभी अचम्भे से यह देख रहे थे! अचानक रुक्मांगद के गुरुमहाराज वहां आए! मेहिनी की ओर देखकर बोले-तू यह पाप कर्म करवा रही है,तुझ्र धिक्कार है! मै तुझे इस इस पाप की सजा दूंगा! यह कहकर गुरुदेव ने हाथ में जल लिया और मंत्र पढ़. कर मोहिनी पर फेंका! जल से अग्नि के समान लपटे उठी और मोहिनी जल कर भस्म हो गई!

यमराज डरे कि कही गुरुमहाराज मुझे भी भस्म न कर दे! यमराज भागे-भागे ब्रह्म जी के पास पहुचें! अब ब्रह्म जी को अहसास हुआ,कि बड़ी गलती हो गई! उन्होने कहा की अब भगवान की शरण मे जाना ही ठीक है! ब्रह्म जी ,यमराज,चित्रगुप्त बैकुंठ पहुचें; बार-बार क्षमा मांगी और कहा-राजा के गुरुदेव को शांत करे!

भगवान ने कहा- यमराज को दंड तो अवश्य मिलेगा! इसने मेरे भक्त को बिना कारण सताया! हमने इन्हे धर्म की गद्दी देकर इनका नाम धर्मराज रखा किंतु इसने मेरी भक्ति को ही चुनौती दे डाली! आज से इसका सौम्य रुप काला और डरावना हो जाएगा! अब से इनका वाहन भैसा हो! देखते ही देखते यमराज काले कलूटे भयंकर स्वरुप वाले हो गए!भगवान बाले-यमराज ये रुप तुम्हे हमेशा तुम्हारी गलती याद दिलाता रहेगा ताकि फिर कभी मेरे भक्त को यमपुर लाने की चेष्टा नही करोगे! वैसे मेरे भक्त की परीक्षा भी पूरी हो चुकी है! सबने देखा, राजा रुक्मांगद अपने पुत्र को राज्य सौप बैंकुठ धाम पहुंच रहे है!
ब्रह्मवैवर्त पुराण

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